शाहिद खान
नित्य संदेश एजेन्सी, नई दिल्ली। भारत को ऋषि-मुनियों और सूफी-संतों का देश कहा जाता है. इन सभी ने मोहब्बत और अमन का पैगाम दिया है. इनके दरबार में हर धर्म के लोग आते हैं. देश में सूफी बुजर्गों की दरगाहों पर भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. लेकिन बीते कई दिनों से देश की कई दरगाहों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज, महाराष्ट्र में हाजी मलंग, उत्तर प्रदेश में शेख सलीम चिश्ती, कर्नाटक के बाबा बुदन समेत कई अन्य दरगाहों में मंदिर होने का दावा किया जाता है. इन सभी के बीच आइए जानते हैं कि क्या होती है दरगाह, देश में हैं कितनी और कौन होते हैं सूफी?
अखिल भारतीय उलेमा एवं मशाइख बोर्ड (AIUMB) के मुताबिक, देश में 574 सूफी बुजुर्गों की दरगाह शरीफ हैं. इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 118, उसके बाद बिहार में 110, गुजरात में 85, राजस्थान में 43, दिल्ली में 42, जम्मू और कश्मीर में 37, महाराष्ट्र में 31, कर्नाटक में 23, मध्य प्रदेश में 21, आंध्र प्रदेश में 14, झारखंड में 10, पश्चिम बंगाल में 8, पंजाब और उत्तराखंड में 7-7, हरियाणा और तमिलनाडु में 5-5, उड़ीसा और गोवा में 3-3, छत्तीसगढ़ और अंडमान निकोबार में 1-1 दरगाह हैं.
क्या होती है दरगाह?
शास्त्रीय इस्लामी लेखक और शोधकर्ता गुलाम रसूल देहलवी ने बताया कि दरगाह वो पवित्र स्थल होता है, जहां किसी सूफी बुजुर्ग की मजार (कब्र) होती है. इसी परिसर में मस्जिद, मदरसे, बैठकें, अस्पताल होते हैं. वह कहते हैं कि 2 महत्त्वपूर्ण कामों से दरगाह की बुनियाद होती है, इनमें पहला भूखों को खाना खिलाना और दूसरा सलामती का पैगाम देना. इसकी नींव सूफी बुजुर्गों ने रखी है. गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि हिंदुस्तान में सबसे पुरानी दरगाह राजस्थान के अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्फ गरीब नवाज की दरगाह है. दिल्ली में ख्वाजा बख्तियार काकी और हजरत निजामुद्दीन औलिया (र.अ.) की दरगाह शरीफ हैं. यहां कई सदियों से लंगर चलता आ रहा है, जिसे सभी धर्मों के लोग प्रसाद के रूप में खाते हैं.
कौन होते हैं सूफी?
इस्लाम के सबसे महान सूफियों में ईराक के शहर बगदाद स्थित शेख अब्दुल कादिर जिलानी को माना जाता है, जिन्हें गौस-ए-आजम (अल्लाह उन पर खुश हो) के नाम से भी जाना जाता है. बात करें भारत की तो यहां सबसे बड़े सूफी बुजुर्ग ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) हैं. इन्हें गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है और इनकी दरगाह राजस्थान के अजमेर शहर में है. वे 12वीं सदी में ईरान के सिस्तान से लाहौर होते हुए राजस्थान के अजमेर पहुंचे थे. उनकी दरगाह शरीफ पर हर धर्म के लोग पहुंचते हैं. गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि ‘सूफी’ अरबी शब्द ‘सूफ’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ऊन, जो सूफियों का पसंदीदा वस्त्र है. वे रेशम और अन्य सुंदर वस्तुओं से बने आकर्षक कपड़ों से परहेज करते थे. इसलिए वह ‘सूफी’ कहलाए.
भारतीय सूफी-संतों ने अपनाया पैगंबर का आदर्श
गुलाम रसूल ने बताया कि भारतीय सूफियों ने पैगंबर मोहम्मद साहब के सादगी भरे जीवन के आदर्शों को अपनाया. उन्होंने जीवन के फिजूलखर्ची और अपव्यय को त्याग दिया और बड़े पैमाने पर मानवता की सेवा करने के प्रयास में उच्च मानवीय आदर्शों का पालन किया. वह कहते हैं कि भारत के सूफी संतों ने अपनी रहस्यमय खोज को समाज सेवा की भावना के साथ जोड़ दिया. वह कहते हैं कि सूफी बुजुर्गों ने जोड़ने की सीख दी, लेकिन कुछ फिरकापरस्त लोग तोड़ने की बात करते हैं और दरगाहों को निशाने पर लेते हैं.
सूफी बुजुर्गों ने दिया अमन और मोहब्बत का पैगाम
देश में सूफी बुजुर्गों ने अमन और मोहब्बत का पैगाम दिया. देश में कादरी, चिश्ती, सोहरवर्दी, नक्शबंदी, मदारिया सिलसिले की दरगाहें हैं. इन्हीं में से कई सिलसिले निकले हैं. देश में कादरी सिसली की सबसे बड़ी दरगाह शरीफ उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहरा शरीफ में स्थित दरगाह खानकाहे बरकातिया है. यहां के सूफी बुजुर्ग हजरत सैयद शाह बरकतुल्लाह फारसी भाषा के साथ ब्रज और अवधि भाषा का ज्ञान रखते थे. उन्होंने ब्रज भाषा में पेम प्रकाश साहित्य लिखा. उन्होंने भारत के आपसी भाईचारे पर एक दोहा लिखा था, ‘पेमी हिंदू-तुर्क में रंग एक ही रहो समाए, देवल और मसीद में दीप एक ही भाए.’
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