सपना साहू
नित्य संदेश, इंदौर। राष्ट्र सेविका समिति द्वारा केंद्रीय अहिल्या पुस्तकालय में वंदे मातरम विषय पर आयोजित कार्यशाला में स्वयं सेविकाओं ने वक्ता की भूमिका में स्वयं के विचार प्रकट किए। विभाग बौद्धिक प्रमुख एवं इस कार्यशाला की संयोजिका सीमा भिसे ने वंदे मातरम के पूरे इतिहास और उसके महत्व को बताते हुए कार्यक्रम का प्रारंभ किया। विशेषतः संन्यासियों के संघर्ष, अंग्रेजों के लगान वसूली से परेशान जन मानस की अनकही स्थिति पर प्रकाश डाला।
दीपाली बॉथम वंदे मातरम किस तरह स्वतंत्रता सेनानियों के लिए जीने का मकसद और गुरूर बना। वीर सावरकर द्वारा अंग्रेजों को नाकों चने चबाने और उनकी इच्छा कि मुझे हमेशा एक हिन्दू संरक्षक के रूप में जाना जाए को बताया।
सुष्मिता व्यास ने भारत भूमि को माता के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि भारत माता हमारी गुरु व संरक्षक है। उसका वंदन, आदर वंदे मातरम गीत में किया गया है। अब आगे इस विरासत को युवाओं को संभालना होगा। सपना साहू ने वंदे मातरम भारतीय आत्मा को दर्शाता मूलमंत्र बताया। अंग्रेज इन दो शब्दों से भयभीत रहते थे। साथ ही वंदे मातरम् गीत के प्रत्येक पंक्ति का अर्थ बताकर इसे और सरल रूप में वर्णित किया।
आशिमा सिरोठिया ने जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी से वक्तव्य का प्रारंभ करते हुए कहा कि पुरातन काल से हमारी भारत भूमि माता के रूप में पूजी गई हैं। बंकिम चंद्र चटर्जी को वंदे मातरत लिखने की प्रेरणा किस तरह मिली इस प्रसंग को भी साझा किया। तत्पश्चात सहबौद्धिक प्रमुख जयश्री बंसल ने वंदे मातरम को जागृति मंत्र बताया और वर्तमान में संघ के पंच परिवर्तनों जिसमें समरसता, नागरिक अनुशासन, कुटुंब प्रबंधन, स्व का भाव व पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता बताई। अंत में उपस्थित सभी स्वयं सेविकाओं ने वंदे मातरम गीत के साथ कार्यशाला का समापन किया।
No comments:
Post a Comment