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Saturday, January 25, 2025

डार्क पैटर्न उपभोक्ता के विश्वास और अनुभव पर ग्रहण : मनीषा कपूर


नित्य संदेश ब्यूरो 
नई दिल्ली। जब कंज्‍यूमर ऐप पहली बार सामने आए तो उन्होंने उपयोग में आसानी का वादा किया, लेकिन बड़े पैमाने पर डार्क पैटर्न के साथ उपभोक्ताओं को अब यह सोचना पड़ रहा है कि क्या उनके साथ ऑनलाइन धोखेबाजी की जा रही है। जैसे-जैसे एआई चैटबॉट उपभोक्ता की सहायता के लिए पहला संपर्क केंद्र बन रहे हैं, डिजिटल शॉपर्स मानवीय हस्तक्षेप के बिना आसान शिकार बन रहे हैं। डार्क पैटर्न उपभोक्ताओं को तब भी लेन-देन करने के लिए मजबूर करते हैं, जब वे सहज नहीं होते, क्योंकि वे इंपल्सिव और आवश्यक खरीदारी वेबसाइटों और ऐप्स परछाए हुए हैं।

मनीषा कपूर (सीईओ एवं महासचिव, एएससीआई) ने कहा, डार्क कमर्शियल पैटर्न डिजिटल चॉइस आर्किटेक्चर के तत्वों को नियोजित करने वाली व्यावसायिक तरीके हैं।ये तरीके विशेष रूप से ऑनलाइन यूजर इंटरफ़ेस में काम करते हैं जो उपभोक्ता की स्वायत्तता, निर्णय लेने या पसंद को बाधित या ख़राब करते हैं। वे अक्सर उपभोक्ताओं को धोखा देते हैं, मजबूर करते हैं या हेरफेर करते हैं और विभिन्न तरीकों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाने की संभावना रखते हैं।कई मामलों में ऐसे नुकसान को मापना मुश्किल या असंभव हो सकता है। गोपनीयता संबंधी धोखा, इंटरफ़ेस में हस्तक्षेप, ड्रिप प्राइसिंग और झूठी अरजेंसी कुछ ऐसी बार-बार होने वाली हेराफेरी हैं जो डिजिटल खरीदारी के दौरान यूजरका मूड खराब कर देती हैं।
 
खरीद चक्र को तोड़ना
निर्णय लेने के चरण में, समय-आधारित (काउंटडाउन टाइमर) या/और स्टॉक-आधारित दबाव (सीमित समय की पेशकश) फौरन काम करने की भावना पैदा करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं में मौका चूक जाने का डर बढ़ जाता है। होटल का कमरा बुक करते समय या कपड़े खरीदते समय, ‘केवल दो बचे हैं’ या ‘पांच अन्य अभी इसे देख रहे हैं’ जैसे रिमाइंडर मिलना आम बात है। ऐसी ‘कमी’ खरीदार पर सौदे के खत्म होने से पहले ही कार्रवाई करने का दबाव डालती है, जिससे संभवतः बिना सोचे समझे निर्णय और अनपेक्षित खर्च हो सकता है। यूजर इंटरफ़ेस हस्तक्षेप दिखाई देने वाले संकेतों का उपयोग करके या तो उन विकल्पों को हाइलाइट या छिपा देता है जो यूजर्स को यह सोचने के लिए गुमराह करते हैं कि यह दूसरे वाले से बेहतर है और वे मूल इरादे के विपरीत चयन कर लेते है।इसके अलावा विवरण को छुपाने या यूजर्स को किसी विकल्प को चुनने के लिए दोषी ठहराने के लिए भ्रामक बारीक प्रिंट का उपयोग करना इंटरफ़ेस हस्तक्षेप के अन्य उदाहरण हैं। पहले से चुने विकल्पों से मैन्युअल रूप से ऑप्ट आउट करना भी एक हस्तक्षेप है जिससे कई लोग परिचित होंगे क्योंकि यह अक्सर चेकआउट के समय दिखाई देता है। भुगतान करते समय, उपभोक्ता ड्रिप प्राइसिंग और बास्केट स्नीकिंग जैसे ज्यादा डार्क पैटर्न में फंस जाते हैं। सुविधा शुल्क, प्लेटफ़ॉर्म शुल्क और न्यूनतम बास्केट मूल्य शुल्क, भुगतान करने के समय सामने आते हैं, जिससे अंतिम कीमत बढ़ जाती है। ये सब उपभोक्ता के लिए चोरी जैसा लग सकता है वह बोझ बन जाता है। फिर भी, उपभोक्ता अक्सर खरीदारी करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया जिले में स्टब हब के खिलाफ हाल ही में दर्ज मामले में अटॉर्नी जनरल ने आरोप लगाया कि उपभोक्ताओं को भुगतान की जाने वाली कुल कीमत का खुलासा करने के बजाय, स्टब एक जटिल ऑर्डर फ्लो बनाता है, जिससे उपभोक्ताओं को वास्तविक कीमत जानने से पहले खरीद प्रक्रिया में (अनावश्यक) समय और प्रयास खर्च पड़ता है। इसमें "भ्रामक रूप से कम कीमत" का विज्ञापन देना शामिल है।इसमें उपभोक्ताओं को भुगतान करने के लिए अनिवार्य शुल्क शामिल नहीं होता, पूर्ण टिकट मूल्य का खुलासा करने से पहले उनकी व्यक्तिगत जानकारी दर्ज करने की आवश्यकता होती है, वॉच टाइमर बनाकर जल्दी से खरीदने के लिए अतिरिक्त दबाव बनाया जाता है। इसके अलावा यूजर्समें तमाम तरीके से जल्दी करने की भावना भरी जाती है।उपभोक्ताओं को जताया जाता है उसका पसंदीदा टिकट मिलना मुश्किल है। इसके लिए पिछले एक घंटे में कार्यक्रम को देखने वाले लोगों की संख्या बताई जाती है। यह बताकर कि कार्यक्रम के टिकट तेजी से बिक रहे हैंऔर यह संकेत देकर कि उपभोक्ता जिन टिकटों पर विचार कर रहा है, वे उस सेगमेंट में उपलब्ध अंतिम टिकट हैं, उपभोक्ताओं को उनकी पसंद के वपरीत खरीदारी के लिए मजबूर किया जाता है। ऑनलाइन सोशल मीडिया में विज्ञापन और मार्केटिंग के तरीकों पर यूरोपीय संघ के एक अध्ययन के अनुसार, यूरोपीय संघ के नागरिकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले 97% ऐप और वेबसाइट में कम से कम एक डार्क पैटर्न मौजूद था। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि इस तरह के तरीकों का इस्तेमाल शायद ही कभी अलग-थलग तरीके से किया जाता है और एक इंटरफ़ेस डिज़ाइन में कई ऐसे डार्क पैटर्न हो सकते हैं।

भारत की स्थिति
एएससीआईअकादमी और पैरेलल हेडक्वॉर्टर "कॉन्शियस पैटर्न" की एक हाल में आई रिपोर्ट ने नौ उद्योगों में 53 टॉप भारतीय ऐप्स से 12,000 स्क्रीन का विश्लेषण किया, जिसमें प्रति ऐप औसतन 2.7 डार्क पैटर्न पाए गए। जांच से पता चला कि एक को छोड़कर सभी ऐप्स ने हेरफेर करने वाले डार्क पैटर्न का इस्तेमाल किया। हेल्थ-टेक ऐप में सबसे ज़्यादा भ्रामक पैटर्न थे, जोकि 8.8 पैटर्न/ऐप थे। गोपनीयता का धोखा सबसे आम डार्क पैटर्न था, और यह 79% ऐप्स में पाया गया। एएससीआई और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) दोनों के पास इस बारे में दिशानिर्देश हैं कि डार्क पैटर्न क्या होता है और इससे उपभोक्ताओं की निर्णय लेने की क्षमता कैसे प्रभावित होती है।

संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों का लाभ उठाना
डार्क पैटर्न प्राकृतिक सोच की आदतों या "संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों" का लाभ उठाते हैं और यूजर्स को ऐसे विकल्पों को चुनने के लिए मजबूर करते हैं जो ब्रांड के लाभ के लिए होते हैं और इससे उपभोक्ताओं का हित प्रभावित होता है। संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों का फायदा उठाना यूजर के निर्णय को सावधानीपूर्वक विचार करने के बजाय शॉर्टकट के लेने के लिए मजबूर करता है। चेकआउट के समय, कई लोग डार्क पैटर्न के बावजूद अपने कार्ट को नहीं छोड़ते हैं जिससे उन्हें परेशानी होती है। ये ऐप्स लोगों केनिरंतरता न टूटनेके पूर्वाग्रह और निर्णय के थकान का फायदा उठाते हैं।यूजर्स समय लगाकर मेहनत सेचुने गएअपने विकल्पों पर अड़े रहने के लिए मजबूर किए जाते हैं, भले ही चेक आउट के समय मिली नई जानकारी उन्हें बताए कि यह उनकी सबसे अच्छा निर्णय नहीं है। फिर से चुनाव कि दिक्कतें उनके लिए पहले से चुने गए विकल्पों से बाहर निकलने में परेशानी पैदा करती है। एयरलाइन टिकट के मामले में सुविधा शुल्क से लेकर सीटों और भोजन के लिए शुल्क तक सब कुछ टिकट की कीमत में जोड़ दिया जाता है। यदि यूजर चेक आउट नहीं करता है, तो उसे अपनी ज़रूरत के लिए फिर से मौजूदा कीमत न मिलने का डर रहता है। यात्रा बीमा जैसी अतिरिक्त वस्तुओं की जांच से निर्णय लेने में थकान होती है औरयूजर चुनाव करना छोड़ देते हैं। चेकआउट से पहले, खरीदारों में कमी और नुकसान से बचने का पूर्वाग्रह होता है, जिससे उन्हें एक ‘सौदा’ खोने का डर होता है जो वास्तविक नहीं हो सकता है लेकिन केवल एक संभावना के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। नकली समीक्षाएं कई लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित करती हैं कि कोई उत्पाद मांग में है या अच्छा है। इससे भी यूजर दबाव में आ जाते हैं। लेकिन कई उपभोक्ता व्यवहार संबंधी पूर्वाग्रहों या जागरूकता की कमी के कारण खरीदारी कर लेते हैं।

उपभोक्ता अनुभव
कुल मिलाकर, डार्क पैटर्न के उपयोग के बारे में उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है, लेकिन एक बार जब इनतरीकों की पहचान हो जाती है, तो ऐसे इंटरफेस के बारे में नकारात्मक धारणा बनने की संभावना है। औसत उपभोक्ताओं की ऐसे तरीकों को पहचानने की क्षमता सीमित है। उपभोक्ता इन तरीकों को अपने सामान्य डिजिटल अनुभव के हिस्से के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। इस बात का वास्तविक खतरा है कि ऐसे तरीके डिफ़ॉल्ट ऑनलाइन मानदंड न बन जाएं। विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिक और नए इंटरनेट सर्फ़र इसके प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं, क्योंकि वे ऐसे पैटर्न को ऑनलाइन दुनिया के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार कर सकते हैं।

डार्क पैटर्न के लगातार संपर्क में रहने से उपभोक्ता में नाराजगी पैदा हो सकती है। इससे अप्रत्याशित लागत, समय और विश्वास की हानि, खराब अनुभव, छुपाई गईजानकीरू, व्यवहार संबंधी हेरफेर और सीमित स्वायत्तता जैसेखतरे हो सकते हैं जैसे-जैसे दुनिया भर के लोग डिजिटल रूप से अधिक समझदार होते जा रहे हैं, यह सब कुछ बदलने वाला है। अमेरिकी शोध एजेंसी, डोवेटेल ने 18 से 54 वर्ष की आयु के 1,000 ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया यूजर्स का सर्वेक्षण किया, जिसमें पाया गया कि वे डार्क पैटर्न से परेशान हैं। इनमें से अधिकांश का भरोसा खत्म हो गया है और कुछ ने गलत करने वाले ब्रांडों का बहिष्कार भी किया है। भारत में, एक क्विक-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म ने हाल ही में पहले से ही प्रीमियम फ्री-डिलीवरी सब्सक्रिप्शनलेने वाले उपभोक्ताओं को हर खरीदारी के लिए डिलीवरी चार्ज मुक्त विकल्प से बाहर करने का फैसला लिया। इसके लिए उसे आलोचना का सामना करना पड़ा. वैश्विक स्तर पर, रेग्युलेटर डार्क पैटर्न को रोकने के लिए कदम उठा रहे हैं। यूरोपीय संघ जीडीपीआर जैसे मौजूदा कानूनों का लाभ उठा रहा है, जबकि भारत ने स्व-नियामक और विनियामक दोनों स्तरों पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। पिछले साल पारित डीपीडीपी (डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन) विधेयक बेहतर गोपनीयता मानदंडों को प्रोत्साहित करेगा। अधिक नियामकीय कार्रवाई भी इस तरह की कोशिशों के लिए एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करेगी।

आगे की राह
आखिरकार, ऐसे इंटरफेस को इस्तेमाल करने का विकल्प संगठनात्मक नैतिकता और संस्कृति पर निर्भर करता है। इसके साथ ही यहा इस पर भी निर्भर करता की कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहती हैं। सामान्य कानून हमेशा तकनीकी कामकाज को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। यह ब्रांड के संरक्षक हैं जिनकों दीर्घकालिक भरोसा बनाने का विकल्प चुनना चाहिए। समय के साथ, ब्रांडों के लिए इंटरफ़ेस के डिज़ाइनमें उपभोक्ताओं के हित को केंद्र में रखना होगा और हेरफेर करने वाले और भ्रामक विक्रेता बनने से बचना होगा। हमें ऐसे इंटरफेस की जरूरत हैजहांयूजर सुरक्षित महसूस करते हैं।

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