नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ: दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत, जहां मधुमेह के मामले सबसे अधिक हैं, में लीवर स्वास्थ्य एक बड़ी चिंता बन गया है। मोटापे की बढ़ती दरों के साथ, लीवर की देखभाल पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। मानव शरीर का सबसे बड़ा ठोस अंग, लीवर, शरीर के वजन का 1-2% हिस्सा बनाता है और यह डिटॉक्सिफिकेशन, मेटाबोलिज़्म, संक्रमण से रक्षा और पाचन जैसी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लीवर की अद्वितीय पुनर्जीवित करने की क्षमता इसे खास बनाती है, लेकिन यही गुण कई बार क्षति के संकेतों को तब तक छुपा देता है जब तक कि स्थिति गंभीर न हो जाए।
लीवर की "शॉक एब्जॉर्बर" की विशेषता इसे भारी दबाव झेलने में सक्षम बनाती है, लेकिन शुरुआती लक्षण तुरंत दिखाई नहीं देते। थकान, भूख में कमी, अपच, या पैरों में सूजन जैसे शुरुआती संकेत अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। दुर्भाग्यवश, ये सूक्ष्म लक्षण धीरे-धीरे पीलिया, पेट में सूजन, बेहोशी, या खून की उल्टी जैसे गंभीर लक्षणों में बदल सकते हैं। ऐसे में, लीवर की क्षति पहले ही काफी बढ़ चुकी होती है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के लीवर ट्रांसप्लांट और बिलियरी साइंसेज विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर, डॉ. राजेश डे ने बताया कि “लीवर रोग का खतरा कुछ विशेष समूहों में अधिक पाया जाता है, जिनमें अत्यधिक शराब (जिसमें बीयर भी शामिल है) का सेवन करने वाले, मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति, तथा क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण से पीड़ित लोग शामिल हैं। एक हालिया अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, मधुमेह क्लीनिक में आए लगभग 30% मरीजों में ब्लड टेस्ट और एलास्टोग्राफी (एक विशेष अल्ट्रासाउंड तकनीक) के जरिए लीवर की कठोरता के संकेत मिले हैं, जो लीवर क्षति की ओर इशारा करते हैं।“
डॉ. राजेश ने आगे बताया कि “लीवर स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए सक्रिय दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें शराब का सेवन सीमित करना या छोड़ना, मधुमेह को नियंत्रित करना, स्वस्थ वजन बनाए रखना, और हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाना शामिल है। संतुलित आहार, जिसमें फल, सब्जियां, और साबुत अनाज हों, और प्रसंस्कृत व तैलीय खाद्य पदार्थों से परहेज, लीवर को स्वस्थ रखने में सहायक है। शुरुआती पहचान और जीवनशैली में बदलाव लीवर क्षति के जोखिम को कम करने के साथ गंभीर जटिलताओं को रोक सकते हैं, जिससे व्यक्ति लंबे और स्वस्थ जीवन का आनंद ले सकते हैं।“
लीवर क्षति की शुरुआती पहचान और रोकथाम के लिए जागरूकता और नियमित जांच आवश्यक हैं। उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को प्लेटलेट काउंट, लीवर फंक्शन टेस्ट और प्रोट्रोम्बिन टाइम जैसे रक्त परीक्षण कराते रहना चाहिए। ये परीक्षण एलास्टोग्राफी के साथ मिलकर लीवर क्षति का समय पर पता लगाकर उचित इलाज शुरू करने में मदद कर सकते हैं, जिससे अपरिवर्तनीय क्षति से बचा जा सकता है।
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