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Wednesday, January 15, 2025

महाकुंभ पर्व पर विशेष...त्रिवेणी के घाट पर,अमृत का मेला



नित्य संदेश डेस्क। विश्व में भारतराष्ट्र के कुंभ मेले के समान कोई दूसरा पर्व दूर-दूर तक दिखाई नही देता है। जिसमें एक माह से भी अधिक के लिए करोड़ो लोग देश,प्रदेश,विदेश के कोने कोने से अपनी उपस्थिति परिवार सहित बड़े हर्षोल्लास के साथ करवाते है। 

इस कुंभ मेले के दौरान अनेक लोगो को रोजगार अथवा अपनी आजीविका चलाने का अवसर भी प्राप्त होता है। बारह वर्षों के बाद कुंभपर्व का अवसर एक बार फिर देश के उत्तरप्रदेश राज्य की धार्मिक नगरी "प्रयागराज" में आया "त्रिवेणी के घाट पर अमृत का मेला"! जो 13 जनवरी से प्रारंभ होकर 26 फरवरी को सम्पूर्ण होगा।आस्था और विश्वास के प्रतीक इस पर्व पर श्रद्धालु देश-विदेश से इस कुंभ के आयोजन में सम्मिलित होंगे विद्वान संतों का आगमन एवं पड़ाव रहेगा। कुछनेक साधु ऐसे भी दिखाई देते है जो सामान्य जनमानस सिर्फ बारह वर्षो में उन्हें कुंभ के मेले में देख पाते इसमे मुख्य रूप से नागा साधू विशेष होते है। कुंभ केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं एक महीने में यह आसपास के क्षेत्र के लिए विकास का एक अवसर भी है। कुंभ में आने वाले संतों-श्रद्धालुओं की सुविधा की दृष्टि से अनेक कार्य करने होते हैं जिनमें कई अस्थाई और अनेक स्थाई प्रकृति के कार्य होते हैं प्रत्येक बारह वर्षों में इन कार्यों की आवश्यकता पड़ती है. महाकुंभ की परंपरा को कायम रखते हुए इतनी उत्कृष्ट व्यवस्था करना बहुत बड़ी बात होती है। यह व्यवस्था वही कर सकता है जिसके मन में भारतीय संस्कृति,प्राचीन परंपरा के प्रति हृदय से लगाव हो तथा जो इस संस्कृति में रचा-बसा हो इस कार्य को पूर्ण समर्पण के साथ कर सकता है।

हिंदू धर्म में कुंभपर्व एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हर बारह वर्षों के अंतराल में देश के चार स्थानों पर होता है। इस उत्सव को कुंभपर्व ही क्यों कहा गया,यह प्रश्न अनेक लोगों के मन में खासतौर पर नए युवाओं के जिज्ञासा में आता है। बारह वर्षों में एक माह के लिए मनाया जाने वाला यह हिंदू त्यौहार के पीछे युगों पूर्व हुए समुद्र मंथन से संबंधित प्राचीन कथा प्रचलित है। कहा जाता है महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता दुर्बल अथवा श्रीहीन हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें अपराजिता किया। इस निराशा के साथ समस्त देवता भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया। भगवान विष्णु ने तब देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। समस्त देवता-दैत्य के साथ संधि करके अमृत निकालने के कार्य में लग गए जिसका उद्देश्य समुद्र के गर्भ में समाहित रत्न, संपदा,विभूतियां एवं अमृत की प्राप्ति था। इस समुंद मंथन में स्वयं भगवान विष्णु ने मस्त्रवतार (कछुआ के रूप में अवतार) शेषनाग ने रस्सी के रूप में तथा मंदिराचल पर्वत "मथनी" के रूप में समुद्र मंथन में सहयोगी बने। मंथन के दौरान सर्वप्रथम विष निकला जिसे महादेव ने इस जगत को सुरक्षित रखने के लिए अपने कंठ में धारण किया। इसके बाद बारी-बारी से ऐरावत हाथी, कामधेनु, माँलक्ष्मी, कल्पवृक्ष ऐसे चौदह रत्न प्राप्त हुए जिसमें सबसे अंत में श्री धन्वंतरि जी के हाथ में "अमृत कलश"था। जैसे ही अमृत कलश निकला देव और दैत्य दोनों उसे पाने के लिए लालायित हुए। कुछ ही क्षण में
देवताओं के इशारों से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गया। दैत्यों ने अमृत की लालसा में "जयंत" का पीछा किया इस दौरान अमृत कलश पर आधिपत्य जमाने के लिए देव-दावन में बारह दिनों तक युद्ध होता रहा इस युद्ध के अंतर्गत धरती के चार स्थानों की नदियों में अमृत झलक कर गिरा। हरिद्वार में गंगा, प्रयागराज में त्रिवेणी संगम, अवंतिका उज्जैन में शिप्रा और त्रयंबकेश्वर (नाशिक) में गोदावरी, तभी से इन चारों तीर्थ स्थान पर कुंभ मेला आयोजित होता है।

लेकिन चार बड़े ग्रह के प्रभाव से अमरत्व के इस दिव्य पदार्थ की अंत तक रक्षा जिन्होंने की वे चार ग्रहों में,चंद्रमा ने अमृत को गिरने नहीं दिया, सूर्य ने कलश फूटने नहीं दिया,गुरु ने दैत्यों से,तो शनि ने 'जयंत' के लालच से बचाया। इस लंबे संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बंदे झलक कर चार स्थानों में गिरी। युद्ध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनीरूप (न कि अवतार) धारण करके देव-दानव युद्ध का अंत कर अमृत बांटकर पिला दिया।(इसी क्षण के दौरान राहु-केतु एवं सूर्य,चंद्रमा के ग्रहण की कथा हुई।) देवताओं के बारह दिन मनुष्य के बारह वर्षों के समान होते हैं एवं "कुंभ भी बारह होते हैं" जिनमें से चार पृथ्वी पर व आठकुंभ देवलोक में होते हैं जिन्हें सिर्फ देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं।

इस बार प्रयागराज के कुंभ मेले में विशेष बात यह कि 144 वर्षो के उपरांत सयोंग बना जिसके आधार पर इस कुंभ को "महाकुंभ" के नाम से हम देख रहे है।महाकुंभ के इस मेले में साधु-संत महात्मा,सन्यासी एवं करोड़ों श्रद्धालु स्नान का लाभ लेते हैं। इसे देखने के लिए सूक्ष्म रूप से स्वयं देवगण भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते है।

प्रस्तुति 
अमित राव पवार
युवा लेखक-साहित्यकार देवास (म.प्र)
दूरभाष-7999711052, 9827796933
ईमेल-amitraopawar15@gmail.com

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