नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध चिकित्सालय है, जहां आय दिन गंभीर मरीज़ो का इलाज विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा जन हित में किया जाता है। एक मरीज जिसका नाम अहमद (बदला हुआ नाम),उम्र 38 साल, निवासी इंचौली का रहने वाला मरीज़ काफ़ी लंबे समय से हाथों व पैरों में कंपन की समस्या से परेशान था। प्राइवेट चिकित्सालयों में भी काफ़ी दिखाया परंतु कोई आराम नहीं मिला।
तत्पश्चात् मरीज़ को अचानक से परेशानी बढ़ने पर उन्होंने मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी में संपर्क किया। जिनको तुरंत आचार्य डॉ अरविंद कुमार की यूनिट, मेडिसिन विभाग के अंतर्गत में भर्ती किया गया। प्रथम दृष्टया देखने एवं परिजनों द्वारा बतायी गई जानकारी के अनुसार उनको दोनों हाथों और दोनों पैरों पर कंपन ट्रिमर 1 वर्ष से थे। गर्दन का ट्रिमर कंपन होना पिछले तीन-चार महीने से और जिसको रेस्ट करते समय और कार्य करते समय भी दोनों हाथों पर ट्रीमर्स कंपन की शिकायत थी। पिछले 1 वर्ष से ही उसकी आवाज में भी बदलाव था। मरीज़ को भर्ती करने के पश्चात उनकी समस्त जाँचे की गई। शुरुआत में मरीज को देखने से यह भी लग रहा था कि मरीज किसी दिमाग की न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम से ग्रसित है किंतु जब मरीज की सारी जांच की गई तो मरीज की जांचों के द्वारा पता लगा कि मरीज को विल्सन (wilson's disease) नाम की बीमारी है।
मेडिसिन विभाग के आचार्य डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि विल्सन रोग (Wilson's disease) बच्चों से लेकर वयस्क तथा बूढ़ों तक को प्रभावित करती है। यह दुर्लभ अनुवांशिक विकार है। जिसमें लीवर और मस्तिष्क में सामान्य मात्रा से ज्यादा मात्रा में मात्रा में तांबा कॉपर जमा हो जाता है। इस बीमारी में लिवर, मस्तिष्क ,तंत्रिका तंत्र, गुर्दे व न्यूरोमस्कुलर सिस्टम प्रभावित होते है और इसी से संबंधित लक्षण मिलते हैं. यह रोग घातक हो सकता है, लेकिन अक्सर चिकित्सा उपचार के प्रति बहुत संवेदनशील होता है खासकर अगर इसका निदान गंभीर बीमारी विकसित होने से पहले ही शुरू हो जाये। कॉपर एक ऐसा खनिज तत्व है, जिसकी हमारे शरीर को कम मात्रा में आवश्यकता होती है। ज्यादातर लोगों को भोजन से ही जरूरत से ज्यादा मिल जाता है, हालांकि लोग अतिरिक्त तांबे से छुटकारा पाने में भी सक्षम होते हैं। लेकिन विल्सन डिजीज में शरीर में तांबे का परिवहन करने वाली प्रोटीन शिरूलोप्लास्मिन (Ceruloplsmin) की कमी (deficiency) होने के कारण तांबे का मेटाबॉलिज्म सामान्य रूप से नहीं हो पता है। इस बीमारी में लिवर में कॉपर पित्त के साथ बना रहता है। नतीजा जन्म के तुरंत बाद ही लीवर में जमा होना शुरू हो जाता है और अंततः इस अंग को नुकसान पहुंचता है. जब लीवर अतिरिक्त तांबे को नहीं रख पाता तो यह खनिज रक्त प्रभाव में चला जाता है और अन्य अंगों में जाकर उनको नुकसान पहुंचता है, जैसे- दिमाग ,लाल रक्त कोशिकाएं, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, गुर्दे व आंखें आदि।
Wilson's disease विल्सन'एस रोग 30000 लोगों में से किसी एक में पाया जाता है। ज्यादातर मामलों में यह अनुवांशिक रूप से होता है। विल्सन रोग से पीड़ित बाल रोगी में रोग विकसित होने के लिए दो खराब जीन्स होने चाहिए, प्रत्येक माता-पिता में से एक, केवल एक खराब जीन्स वाले लोगों में कभी भी लक्षण नहीं होते और उन्हें उपचार की भी आवश्यकता नहीं होती है, हालांकि वह अपने बच्चों को यह रोग दे सकते हैं ! परंतु कुछ मामलों में विल्सन रोग अनुवांशिक नहीं होता है इन मामलों में जींस दोष का कारण अज्ञात है । विल्सन रोग के लिए एकमात्र ज्ञात जोखिम कारक रोग का पारिवारिक इतिहास है। विल्सन रोग बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी अवस्थाओं को प्रभावित करता है।
विल्सन रोग का एक विशिष्ट लक्षण केसर फिसर रिंग ( Kayser Fleischer ring) होती है। यह आंख के कॉर्निया के चारों भूरे रंग का छल्ला होता है, जिसे केवल आंखों की जांच के माध्यम से देखा जा सकता है इस जांच को सेलेक्ट लैंप(Slit lamp examination)एग्जामिनेशन द्वारा ही देखना संभव है ।
यह किसी भी दृश्य समस्या से संबंध नहीं रखता है।
अन्य लक्षण अलग-अलग होते हैं और वह इस बात पर निर्भर करते हैं की प्रभावित भाग यकृत (liver)है, रक्त है, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र ,गुर्दे या मस्कुलर सिस्टम है। जो भी भाग प्रभावित होता है उसी के लक्षण मरीज में दिखाई देते हैं, जैसे यकृत अगर प्रभावित होता है तो मरीज में पीलिया त्वचा और आंखों का रंग पीला होना, पेट में सूजन या दर्द होना रक्त बहाव की प्रवृत्ति, खून की उल्टी, थकान होना आदि। अगर मस्तिष्क प्रभावित होता है तो मनोवैज्ञानिक लक्षण मिलते हैं जैसे अवसाद चिड़चिड़ापन चिंता मिजाज का प्रभावित होना आक्रामक या अन्य अनुचित व्यवहार। बोलने या निगलने में कठिनाई , झटका कंपन ट्रिमर मांसपेशियों का कठोर होना और चलने में समस्या होना, संतुलन को सही रखने में परेशानी होना आदि।
विल्सन रोग का निदान जटिल हो सकता है और इसका मूल्यांकन ऐसे चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए जो विभिन्न प्रकार के परीक्षणों से परिचित हो और परीक्षकों की व्याख्या कैसे की जाए इसकी भी जानकारी हो।
यह अपेक्षाकृत दुर्लभ बीमारी है इसलिए मनोवैज्ञानिक लक्षण या हेपेटाइटिस जैसे सामान्य लक्षणों को पहले अन्य रोगों से जोड़ा जा सकता है। इस बीमारी को पता करने के लिए ब्लड के टेस्ट लीवर से संबंधित व गुर्दे से संबंधित टेस्ट, यूरिन का टेस्ट आंखों का परीक्षण जेनेटिक परीक्षण लिवर बायोप्सी आदि कराने होते हैं. यह परीक्षण लक्षण प्रकट होने से पहले विल्सन रोग को दिखा सकते हैं। यही कारण है कि चिकित्सक सुझाव देते हैं कि विल्सन रोग से पीड़ित लोगों के सभी सगे भाई बहनों की जांच करानी चाहिए। यह परीक्षण लक्षण प्रकट होने के पहले विल्सन रोग को दिखा सकते हैं जिससे कि रोगी की गंभीर अवस्था में पहुंचने से पहले ही मरीज को सामान्य स्थिति में किया जा सकता है।
मरीज के सही इलाज हेतु उनकी आंखों की भी जाँच करायी गई। जिसमें के एफ रिंग (slit lamp examination) मिली। मरीज के लीवर की जांच , गुर्दे की जांच और ब्लड व यूरिन की सभी जाँचे करायी गई।जिससे मरीज की जाँचोपरांत पुष्टिक्रत रोग निर्णय (डायग्नोसिस) बनाई गई।
तुरंत मरीज का इलाज शुरू कर किया गया। मरीज की स्थिति में सुधार होना शुरू हो गया । चिकित्सालय से छुट्टी के समय जब मरीज को डिस्चार्ज किया गया तो मरीज एवं उनके परिजनों ने मेडिसिन यूनिट के सभी चिकित्सक जैसे डॉ डॉक्टर पंकज कुमार, डॉ सामिया, डॉ.शशांक ,डॉ प्रखर व डॉ सौम्या तथा नर्सिंग स्टाफ,पैरामेडिकल स्टाफ सभी का धन्यवाद किया।
मरीज़ के परिजनों को भी इस आनुवंशिक बीमारी के कारण सभी जाँचे कराने की सलाह दी गई, जिसके उनके एक भाई को भी यह बीमारी होने का पता चला। जिनको उचित इलाज कराये जाने की सलाह भी मेडिसिन विभाग की यूनिट द्वारा दी गई। प्राचार्य डॉ आर सी गुप्ता व मेडिसिन विभाग की पूरी यूनिट टीम को बधाई दी।
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