सपना साहू
नित्य संदेश, इंदौर। प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। जिसमें महिलाओं के किए कार्यो की बढ़-चढ़कर प्रशंसा की जाती है। जो होना भी चाहिए क्योंकि नारी तो गुणों की खान है। प्रभु तक ने नारी रूपी कृति की रचना इतने सुंदर ढ़ंग से की है कि वह मां, बहन, भार्या, बेटी, सखी आदि बनकर पुरुष को जन्म देने, पालन पोषण, प्रेम पूर्वक उसके जीवन सुधार में साथी बन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नारी के स्नेह, सहयोग, समझदारी, सहनशीलता को कभी भी नकारा नहीं जा सकता। यूं तो हमारे भारत में प्राचीनकाल से ही नारियों की स्थिति बहुत उन्नत रही थी। जिसके कई प्रमाण हमारे वेद, पुराण, स्मृति आदि धर्मग्रंथों में पढ़ने को मिलते है।
हमारी मनुस्मृति कहती है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहां नारी की पूजा जाती है वहां देवताओं का वास होता है। हमारे यहां प्राचीनकाल में कोई कन्या भ्रुण हत्या, बालिका विवाह, दहेज, घुंघट, अशिक्षित बालिकाओं के प्रमाण नहीं मिलते। हां, सशक्त नारी स्थिति के प्रमाणों अवश्य ही पाए गए है। विदुषी नारियों जैसे गार्गी, सीता, मैत्रेयी, लोपमुद्रा, घोषा, अपाला, विश्ववारा, इंद्राणी, लीलावती, सुलभा, द्रोपदी, अरूंधती आदि के नाम मिलते है। नारी को मिली समानता का प्रमाण स्वयंवर होते थे। तो पिता, पति के कार्यो में हाथ बंटाने वाली नारियो के भी उदाहरण मिलते है। हमारे कृषि प्रधान देश में तो क्या पुरुष, क्या स्त्री सभी आर्थिक स्वावलंबी रहे है। कुल मिलाकर प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी थी पर धीरे-धीरे मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं के आने से, उनकी संस्कृतियों के भारत में प्रवेश करने से नारियों की स्थिति में गिरावट आई और कुप्रथाएं भी घर करती गई। जिन्हें समय-समय पर आधुनिक भारत में समाप्त भी कर दिया गया और उसके विरूद्ध कानून भी बना दिए गए ताकि महिलाएं स्नेह, आदर, सम्मान, समानता, सक्षमता से स्वावलंबी जीवन जी सके। इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार भी हुआ है। आज वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर धरती से आकाश तक का सफर तय कर रही है। आज के समय में नारी का कार्यक्षेत्र घर तक सीमित नहीं रह गया है। वह हर उस कार्यक्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रही है जिसमें केवल कभी पुरुषों का दबदबा था। हालांकि भारत में अभी भी महिलाओं को समानता का अधिकार पूरी तरह से नहीं मिला है। विभिन्न रिपोर्टों और अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं को कई क्षेत्रों में अभी भी बराबरी नहीं मिली है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल दो-तिहाई कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। आर्थिक असमानता भी दृष्टिगोचर है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है। वही समान काम के लिए समान वेतन के मामले में भी असमानता है। राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भी महिलाओं को अभी भी कई चुनौतिया है। वही सामाजिक असमानता के अंतर्गत महिलाओं को आज भी सामाजिक भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और समानता लाने के लिए अभी भी कई प्रयास किए जा रहे हैं। जो जरूरी भी है क्योंकि हर महिला समान स्वभाव की नहीं होती, न ही सबकी परवरिश, परिस्थिती एक सी होती है जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो।
वही दूसरी ओर मेरा मानना यह भी है कि वर्तमान में कुछ नारियां बहुत आधुनिक हो चुकी है और कुछ अभी भी उतनी सक्षम नहीं बन पाई है जितना होना चाहिए। संक्षेप में, कहे तो नारियों की स्थिति को तीन भागों में बांटा जा सकता है पहली शोषित, दूसरी सामान्य आधुनिक और तीसरी अति आधुनिक। यूं शोषित महिलाओं का प्रतिशत कम है। वही सामान्य आधुनिक नारियां घर, परिवार के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी अपने संस्कारों व मान मर्यादा में रहकर निभा रही है। लेकिन, अति आधुनिक नारियों के दिमाग पर एक फितूर चढ़ा है, जिसमें वह खुद की नुमाईश करती नज़र आती है। जिसमें कम वस्त्र पहनना, व्यसन करना, लिव इन रिलेशन में रहना, सोशल मीडिया का गलत प्रयोग कर खुद को समाज में व्यंजन की तरह परोसना है। वही वे अति आधुनिक होने की दौड़ में इतना आगे निकल चुकी है कि पुरुषों द्वारा किए जाने वाले दमनकारी कामों को भी करना चाहती है।
हम इन दिनों एक ओर नारियों का अच्छा स्वरूप देख रहे है, साथ ही ऐसा रूप भी देख रहे है जो महिला सशक्तिकरण से अधिक महिला द्वारा दमिनीकरण प्रतित होता है। कहा जाता है सफल पुरुष के पीछे किसी न किसी नारी का हाथ होता है। तो वैसे ही किसी स्त्री की सफलता में पिता, भाई, पति, हितैषी पुरुष का हाथ जरूर होता है लेकिन, कुछ अति आधुनिक महिलाएं सफलता को पचा नहीं पा रही है। जैसे थोड़े दिन पहले हमने कुछ घटनाएं पढ़ी कि पति ने पत्नियों को पढ़ाया, लिखाया और मुकाम पर पहुंचने के बाद पत्नियां, पति को दरकिनार कर रही है। महिला एसडीएम का केस तो ऐसे ही पूरे भारत में चर्चा का विषय बना था। ऐसा रूप भी देख रहे है कि जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो चुकी है वे पुरुषों को नीचा दिखाना नहीं छोड़ रही है। वहीं हम नारियों का विभत्स रूप भी देख रहे है जिसमें अतुल सुभाष, मानव शर्मा, आगरा के जितेंद्र ने पत्नी, प्रेमिका से तंग आकर आत्महनन कर लिया। वही देवास के राजनैतिक परिवार से संबंधित प्रमोद वर्मा ने भी आत्महत्या का प्रयास किया। वही दहेज प्रताड़ना तथा बलात्कार आदि की रपट भी महिलाएं मिथ्यापूर्ण ढंग से दर्ज करवाती पाई जा रही है। इन मामलों से पता चलता है कि पुरुषों को भी वैवाहिक और प्रेम संबंधों में प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। यह एक गंभीर समस्या है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है। हालांकि इनका प्रतिशत कम है। ऐसी नारियों के कारण, कानूनी अधिकारों का दुरूपयोग देखने को मिल रहा है। पर ऐसी घटनाओं के उदाहरणों से नारी समाज की साफ-सुधरी छवि धूमिल होती है।
मेरा यहां कहने का मतलब यह कदापि नहीं है कि महिलाओं को उनके मिले अधिकारों से वंचित कर दिया जाए। पर नारी सम्मान के लिए उनके राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से उत्थान के लिए जो कदम बढ़ाए गए है तो ऐसे उदाहरणों के सामने आने पर दूसरी नारियों के व्यक्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है। भारत में सदैव नारी की छवि आदर्शमय रही है और आगे भी वैसे ही बनी रही इसके लिए नारी शक्ति को स्वतंत्रता के दुरुपयोग से बचना चाहिए। नारी की प्रकृति कभी भी क्रुर, व्याभिचारी, अपराधी प्रवृत्ति की नहीं रही है। वह लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती, सीता, सावित्री बनकर अधर्म को हराकर धर्म स्थापित करती आई है। उसने हर युग में गृहकार्य, ज्ञान, कौशल, विज्ञान, शिक्षा के क्षेत्र में कुटुंब, समाज और देश की गौरव पताका फहराई है। अब भी सभी महिलाओं को सशक्तिकरण के कानूनों का सदुपयोग करते हुए शुभ की ओर ही बढ़ते रहना होगा।
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