नित्य संदेश एजेन्सी
नई दिल्ली. मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार को निधन हो गया. स्वास्थ्य समस्या के चलते वे कुछ समय से अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित एक अस्पताल में भर्ती थे और इलाज करा रहे थे, लेकिन सोमवार सुबह 73 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. अपने पिता से तबला वादन सीखने के बाद उन्होंने छोटी उम्र से इसकी शुरुआत की और फिर दुनियाभर में फेमस हो गए. पद्म श्री और पद्म विभूषण जैसे अवॉर्ड विनर जाकिर हुसैन अपने पीछे करोड़ों की संपत्ति छोड़ गए हैं.
उस्ताद जाकिर हुसैन को तबला बजाने का हुनर अपने पिता अल्ला रक्खा से विरासत में मिला था। उनके पिता ने जाकिर हुसैन के जन्म के बाद ही सबसे पहले उनके कान में तबले की सुर और ताल फूंक दी थी। आठ साल पहले एक साक्षात्कार में उस्ताद जाकिर हुसैन ने बताया था कि जब जन्म के बाद उनको घर लाया गया तो पिता ने पहली बार प्रार्थना की जगह उनके कान में तबले की लय फूंककर उनका स्वागत किया था। उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह अमेरिका में निधन हो गया।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने बताया था कि जब मुझे जन्म के बाद पहली बार घर लाया गया और पिता की गोद में सौंपा गया। हमारे घर में परंपरा थी कि पिता को पहली बार बच्चे को गोद में लेने के बाद उसके कान में प्रार्थना पढ़नी होती है। बच्चे कान में इस दौरान अच्छे शब्द कहे जाते हैं। उन्होंने बताया था कि पिता ने मुझे गोद में लिया और मेरे कानों में तबले की लय सुनाई। तब मेरी मां ने गुस्सा किया कि यह क्या कर रहे हो? तो उन्होंने मां से कहा था कि संगीत ही मेरी साधना है और यही सुर और ताल मेरे बेटे के लिए मेरी दुआ है मैं देवी सरस्वती और भगवान गणेश का उपासक हूं। जाकिर हुसैन ने कहा था कि जो ज्ञान पिता को अपने शिक्षकों से मिला है और वह इसे अपने बेटे को देना चाहते थे।
पहले कॉन्सर्ट में मिले थे पांच रुपये
जाकिर हुसैन ने बताया था कि जब वह 12 साल के थे, तो वह अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। इस समारोह में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत दिग्गज भी थे। जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ मंच पर गए। तब प्रदर्शन के लिए उन्हें पांच रुपये मिले। उन्होंने कहा था कि 'मैंने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया है, लेकिन वे पांच रुपये सबसे मूल्यवान थे।
आरक्षित बोगी में यात्रा नहीं कर पाए थे जाकिर
उस्ताद जाकिर हुसैन ने 11-12 साल की उम्र में तबला वादन का सफर शुरू कर दिया था। वह जगह-जगह अपने कॉन्सर्ट के लिए यात्रा करते थे। जाकिर ने बताया था कि जब वह यात्रा करते थे तो उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह आरक्षित कोच में यात्रा कर सकें। इस वजह से वह ट्रेन की भीड़ वाली कोच में चढ़ जाते थे। वह ट्रेन में सीट न मिलने पर अखबार बिछाकर नीचे बैठ जाते थे। तबले पर किसी का पैर या जूता ना लगे, इसलिए वह उसे अपनी गोद में रख लेते थे। जब तक उनका सफर जारी रहता था, वह तबले को एक बच्चे की तरह गोद में उठाए रखते थे।
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