नित्य संदेश। सनातनी पंचांग के अंतिम फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पावन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। आंग्ल कैलेण्डर के अनुसार महाशिवरात्रि का पर्व फरवरी या मार्च माह में मनाया जाता है। यह प्रमुख रात्रि आदि, अनंत महादेव और उनकी शक्ति पार्वती जी से जुड़ा आध्यात्मिक पर्व है। जिसका शाब्दिक अर्थ शिव की महान रात्रि होता है। जो एक ऐसी वृहद तिथि है जो आध्यात्मिक चेतना को जागृत करती है। वही यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन विशेष ग्रह नक्षत्रों की युक्ति होने से पृथ्वी के सबसे निकट चंद्रमा के आ जाने से जो गुरूत्वाकर्षण शक्ति बढ़ती है, उससे मानव के अंतःकरण की चेतना जागृति और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह महापर्व आध्यात्मिक दृष्टि से भी जागृति की रात्रि है जो मनुष्यों में सकारात्मक शक्ति, ओज, स्फूर्ति व क्षमता को बढ़ाती है।
महाशिवरात्रि एक नहीं कई कारणों से अति महत्वपूर्ण पर्व तिथि है। शिव महापुराण के अनुसार धरा पर इसी दिन से शिव जी का पूजन, शिवलिंग के रूप में प्रारंभ हुआ। फिर इसी दिन शिव-शक्ति विवाह बंधन में भी बंधे। इसमें उनकी गृहस्थी की कलात्मकता का प्रारंभ निहित है। अब, शिव औघड़ नहीं, गृहस्थ हैं। अब, वे युगल दो नहीं एक होकर, एक साथ, एक आसन पर हिम पर्वत की सुंदर चट्टान पर विराजित हैं। वे भोले अब दिगम्बर से बाघम्बर धारी है। तो वह महलों की राजकुमारी, खुले गगन की निवासी है। यह जीवन परिवर्तन संग जीवन के उतार-चढ़ाव में गृहस्थी की सुंदरता का दर्शन है। यह दिव्य युक्ति, संगति और शांति का निरूपण है।
एक अन्य घटना के रूप में, जब समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले तो कालकूट या हलाहल विष भी निकला। जिसके कुप्रभाव से सारा त्रिलोक नष्ट हो जाता और शिव बिन इस काल लाने वाले विष को कोई अन्य धारण करने में सामर्थ्यवान नहीं था। इसके दुष्प्रभाव को सिर्फ शिव शंकर ही गृहण कर सकते थे क्योंकि, वे आदि और अनंत है। वे ही उस समय संपूर्ण सृष्टि की रक्षा करने में सक्षम थे इसलिए, उन्होंने हलाहल को अपने कंठ में धारण कर, संसार की रक्षा की। वे तभी से सब पर उपकार करने के कारण नीलकंठ महाकाल, देवों के देव महादेव कहलाए। समुद्र मंथन की घटना और हर बारह वर्षो में समान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति होने से प्रयागराज के कुंभ स्नान महाशिवरात्रि को होता आया है और 2025 के महाकुंभ में भी शिव जी को समर्पित स्नान आयोजित होगा। तत्पश्चात, कुंभ और इस बार तो महाकुंभ का समापन होगा।
यह संबंधित सभी घटनाएं काल परिवर्तन के साथ महाशिवरात्रि पर ही घटित हुई थी। जिनका उल्लेख शिव महापुराण, पद्म पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण में भी आता है। इसलिए, लोग इस तिथि पर शिव-शक्ति की पूजा व व्रत रख सुबह से सम्पूर्ण रात्रि तक उत्सव करते है। इस विशेष दिवस पर महादेव के मंदिरों में जन-जन विशेष पूजन अनुष्ठान करते है, वे शिव लिंग पर जल, दुग्ध अभिषेक करने के साथ देवालयों का सुंदर श्रंगार कर भोग, फूल, फल, कदली, मेवा प्रसाद चढ़ाकर शिव-शक्ति से आशीर्वाद में स्वयं के लिए सुख, शांति, समृद्धि, सौभाग्य संग सकल विश्व के कल्याण की कामना करते है।
भक्तगण की प्रार्थना होती है जीवन में अंधकार और अज्ञानता से प्रकाश की ओर बढ़े। इसमें रात्रि जागरण महत्वपूर्ण है इसलिए, यह कुल मिलाकर, पूरे दिन और रात्रि का त्योहार है जो प्राकट्य, समर्पण, मानव मात्र के कल्याण, गृहस्थ और ज्ञान का सार को दर्शाता है। महाशिवरात्रि महादेव से जुड़ा महापर्व है इसे ऋषि, योगी, संत, महात्मा संग-संग गृहस्थ उपासक भी बहुत उत्साह से मनाते है। इस तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धावान भक्त क्षेत्रीय महादेव के मंदिरों से लेकर बारह ज्योतिर्लिंगों में जिनमें सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घृष्णेश्वर में दर्शनों के लिए लालायित रहते है। इस दिन विशेष मुहूर्त में पूजन नहीं बल्कि पूरे दिन और रात ही शुभ, मंगलमयी मुहूर्त मान्य होता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि 26 फरवरी, 2025 को है।
भौतिक विज्ञान के अनुरूप ब्रह्मांड में पदार्थ, ऊर्जा और आकाशगंगाओं सहित हर चीज को एक ऊर्जा के रूप में प्राप्त किया जा सकता है। यह चैतन्यता योगिक रीतियों से संबंधित और बहुत गहरी है। जो योगी जन हैं वे, ब्रह्मांड के साथ स्वयं के एकीकरण को अनुभव करने के लिए आदियोगी शिव का विशेष ध्यान और साधना करते हैं। हर महाशिवरात्रि शिव से जुड़ाव का अद्भुत संयोग देती है। वही आम भक्त भी शिवप्रजा बन शंकर पार्वती के विवाह का आयोजन करते है। वे उपवास रखते है। सभी जन शुद्ध वातारण में शिव को मंत्रों, प्रार्थना, जाप से उद्घोष करते है। वे आध्यात्मिक विकास की यात्रा में बढ़ते है।
कुल मिलाकर महाशिवरात्रि के छह मुख्य लक्ष्य हैं, जो विशेष है जिसमें 1. शिव शक्ति की पूजा, मंत्रोच्चार, स्तुति, आरती से आशीष पाना, 2. आध्यात्मिक विकास के लिए ध्यान योग करना, 3. भजन-कीर्तन, व्रत-उपवास करना, 4. तन, मन के पापों से मुक्ति की प्रार्थना, 5. सकारात्मक ऊर्जा का संचार होना, 5. पारिवारीक, सामाजिक, राष्ट्रीय शांति, वैभव, एकता व समरसता के दर्शन होना है। आध्यात्मिक दृष्टि से शिव सृजन कर्ता, रक्षक और संहारक है और जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव के ध्यान से आत्मा के निर्मल होने से आत्मा का परमात्मा से मिलन की राह सरल होती है। महाशिवरात्रि त्योहार से बढ़कर साधकों के लिए एक आत्मज्ञान से भरे शांतिपूर्ण जीवन की दिशा बढ़ने की विशिष्ट यात्रा है। हम सभी में शिव समाहित है, यह शिवमय महापर्व सर्व उत्थानमय तथा कल्याणकारी हो यही मंगलकामनाएं।
प्रस्तुति
सपना सी.पी. साहू
इंदौर (म.प्र.)
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