नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन आचार्य विनय शास्त्री ने भक्ति गीतों के साथ सती चरित्र, शिव विवाह, शुकदेव जी का आगमन, राजा परीक्षित का गृह त्याग आदि प्रसंगों का मार्मिक वर्णन किया।
चतुश्लोकि भागवत का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने बताया कि सबसे पहले भगवान के श्रीमुख से ब्रह्मा जी ने इसका श्रवण किया, ब्रह्मा जी ने नारद जी को इस सुनाया, नाराज जी द्वारा शुकदेव जी को एवं शुकदेव जी द्वारा राजा परीक्षित को चतुश्लोकि भागवत सुनाई गई। जन्म देने वाली मां की महिमा का वर्णन करते हुए व्यास पीठ से आचार्य जी ने कहा की मां से बढ़कर त्याग इस संसार मे किसी का नहीं है । मां अपनी संतान के किये जीवन भर त्याग ही करती रहती है। इस जीवन में यदि आप अपनी मां का कहा मानते हैं और उसे प्रसन्न रखते हैं तो भगवान स्वयं प्रसन्न हो जाते हैं ।
मां की दुआ कभी खाली नहीं जाती
मां की बद्दुआ कभी टाली नहीं जाती
चारों बेटों को एक साथ पाल देती है मां
पर चार बेटों से एक मां पाली नहीं जाती
एक मां को सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब उसका बेटा उसके सामने लड़खड़ाते पैरों से आता है । इसलिए कभी भी शराब पीकर अपनी मां के सामने नहीं आना ऐसा करने से यदि संसार में सबसे ज्यादा दुख होगा तो वह केवल तुम्हारी मां को होगा। श्रीमती आभा गोविल जी, मंजरी अग्रवाल जी, विनीता अग्रवालजी ने श्रीमद् भागवत का पूजन किया। अंत में सभी ने आरती कर प्रसाद ग्रहण किया।
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