नित्य संदेश। आदर्श विभूति, महान दार्शनिक, अद्वितीय विचारक, युग दृष्टा स्वामी विवेकानंद का अवतरण 12 जनवरी 1863 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेंद्र था और श्री रामकृष्ण परमहंस, इनके आध्यात्मिक गुरु थे।
भारत में इनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में सन 1985 से बनाया जा रहा है। इसका कारण है कि स्वामी विवेकानंद मां भारती के ऐसे लाल थे जो भले ही आयु में युवा थे पर आध्यात्मिक दृष्टि, ज्ञान, दर्शन, उत्कृष्ट विचारों की शक्ति से बहुत बड़े थे। वे ऐसे युवा संत हुए जिन्होंने भारतीय अध्यात्म का परचम पूरे विश्व में फैलाया। उन्होंने शिकागो में धर्म सभा को सम्बोधित कर बडे़-बडे़ धर्म व्याख्याताओं को प्रभावित किया। उनका समाधिस्थ होना भी 4 जुलाई, 1909 में मात्र 39 वर्ष की आयु में हो गया था। लेकिन उन्होंने जो तर्कपूर्ण, यशस्वी कार्य किए उसी के कारण उनके जन्मदिन को स्मृति स्वरूप राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी जी का मानना था कि देश का भविष्य, देश की ऊर्जा, देश की ताकत युवाओं में समाहित है। वे श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण में महत्ती भूमिका का निर्वहन कर सकते है। युवाओं की चैतन्यता से देश प्रगति मार्ग पर बढ़ सकता है। वे देश में फैली बदी, गुलामी, गलत कार्यो, अपराधों को दीमक की तरह मानते थे। जिससे भारतीय सभ्यता संस्कृति नष्ट होने का डर था। वे कहते रहे कि युवा शक्ति ही अपने आशान्वित प्रयासों व जागृति से भारत को बढ़ा सकती है। वे युवाओं को अपनी संकल्प शक्ति, शौर्य, साहस, समझदारी से उन्नतिशील राष्ट्र निर्माण करने में सक्षम कहते थे।
जब 1897 में मद्रास में वह युवाओं को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने भारत विजय अभियान से कैसे भारत ने बड़ी-बड़ी जीत प्राप्ति की है उससे अवगत करवाते हुए आत्मगौरव के भावो को युवाओं में बढ़ाया। उन्होंने पुरातन सभ्यता, संस्कृति, साहस तथा संस्कार के मेल से भारत को पुनः विश्व गुरु के पद को पाने में युवा पीढ़ी को सहायक माना था। स्वयं के प्रेरणा कारक मंत्रों से युवाओं को लक्ष्य प्राप्ति को कहा। उन्होंने अपने विचारों से युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने की प्रेरणा दी। स्वामी विवेकानंद का पूर्ण जीवन एकनिष्ठ, अनुशासन, जिज्ञासा, एकाग्र होकर स्वयं के लक्ष्य के प्रति समर्पण सीखाता है। वे मानते थे युवाजन अपनी ऊर्जा से दुनियाभर की सारी समस्याएं सुलझाने में सक्षम है।
स्वामी विवेकानंद युवाओं को दुर्बलता पर जीत का मंत्र कर्म साध्य होना बताते थे। वे राष्ट्रसेवा और मानवता की सेवा समान मानते थे। दीन, दुखियों का सहायता वंचित वर्गो, दरिद्र नारायण के भाव को ऊपर रखने का मंत्र उन्होंने युवाओं दिया। वह भारत की आजादी के पक्षधर थे। उनका मानना था गुलामों का कोई धर्म नहीं होता। भारत अपनी आध्यात्मिक उन्नति तब ही कर सकता है जब राष्ट्र स्वतंत्र हो। उनकी बातों से कई युवा क्रांतिकारी प्रेरित हुए। वे सज्जनता का मूलमंत्र चरित्र को बताते थे। चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण की अवधारणा विवेकानंद जी ने युवाओं को दी।
वे सतत सीखने की प्रेरणा देते रहे वह कहते थे सीखने की आयु नहीं होती। छोटो से भी ज्ञान मिले तो प्राप्त करो। ज्ञान अनुभव से तो मिलता ही है पर छोटो से नहीं मिलेगा यह अवधारणा गलत है। प्रेरणा किसी से भी ली जा सकती है। वे सलाह देते थे कि सहनशीलता बड़ी से बड़ी समस्या को विकराल नहीं होने देती। जन जैसी सोच रखेंगे, वैसे ही बनेंगे। अतः सोच व्यक्तित्व निर्धारित करती है। परिवर्तन को स्वीकारना उन्नति में सहायता करता है। सत्य की राह कठिन होती है पर कठिनाई से घबराना नहीं चाहिए। युवाओं को वह कहते थे दयालुता और विनम्रता दिव्य गुण है इनका अनुसरण मन को शांत रखता है।
वे समझाते रहे कि जब तक कामयाबी न मिले तब तक हिम्मत मत हारो, बल्कि कोशिश करते रहो और विफलता से सबक लेकर प्रयास करते रहो एक दिन सफलता शीश झुकाए मिलेगी। इस तरह स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं उसी समय के युवाओं के लिए ही नहीं बल्कि डेढ़ दशक से अधिक के बाद, आज भी, युवा पीढ़ी के लिए अभिप्रेरण है। प्रेरक व्यक्तित्व के धनी विवेकानंद जी अपने 39 वर्ष के अल्प जीवनकाल में देश की युवाओं के लिए सैकड़ों वर्ष आगे की कार्ययोजना बना गये थे।
इसलिए 2024 में राष्ट्रीय युवा दिवस का लक्ष्य उनके विचारों व कार्यों को युवाओं को अवगत करवाना था और 2025 के वर्ष में यह लक्ष्य राष्ट्र निर्माण के लिए युवा सशक्तिकरण है। स्वामी विवेकानंद जैसे युग दृष्टा को उनकी जन्म जयंती राष्ट्र युवा दिवस पर सादर नमन व विनम्र श्रद्धासुमन अर्पण।
प्रस्तुति
सपना सी.पी. साहू
(इंदौर, मध्य प्रदेश)
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