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Thursday, January 9, 2025

हिंदी को दैनिक दिनचर्या की भाषा से आगे ले जाकर रोजगार की भाषा बनाने के प्रयत्न होने चाहिए: प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी


नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय) में 'विदेशों में हिंदी' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया. 

जिसमें मुख्य वक्ता विभाग के अध्यक्ष और वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भाषाएँ अब देश की सीमाओं से बाहर जा रही है। लिपियों की बाध्यता भी भाषाओं में अब नहीं मानी जा रही और एक भाषा को दूसरी भाषा की लिपि में लिखा जा रहा है। भारत में अपनी मातृभाषा को तकनीकी और व्यावहारिक स्तर पर उस रूप में नहीं अपनाया जा रहा जिस रूप में उसे अपनाया जाना चाहिए। इसके फलस्वरूप हमारी नवीन पीढ़ी को पढ़ने और पढ़ने में ज्यादा प्रयास करने पड़ रहे हैं। सिनेमा और सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार विश्व स्तर पर हो रहा है। विश्व हिंदी दिवस के रूप में शासन और जनता दोनों स्तर पर हिंदी को वैश्विक रूप में देखने समझने के लिए एक मंच प्रदान करता है। हिंदी को दैनिक दिनचर्या की भाषा से आगे ले जाकर रोजगार की भाषा बनाने के प्रयत्न होने चाहिए। वास्तव में तभी विश्व हिंदी दिवस की प्रासंगिकता है। अपना देश अपनी भाषा का सूत्र ही हमें भाषाई स्तर पर मजबूत बना सकता है।

राष्ट्रपति भवन के पूर्व हिंदी विशेषाधिकारी डॉ राकेश बी. दुबे ने कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी में बहुत महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। लेकिन बहुत सारे साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने विश्व स्तर पर हिंदी में रचनात्मक स्तर पर बड़ा योगदान दिया है किंतु उनके साहित्य पर शोध कार्य बहुत कम हुआ है। हिंदी में नए शोध विषय शामिल होने चाहिए और उन साहित्यकारों को जगह मिलनी चाहिए जो अब तक प्रकाश में नहीं आए हैं।

कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर अंजू ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर प्रवीण कटारिया डॉक्टर विद्यासागर सिंह, डॉ यज्ञेश कुमार, पूजा यादव, रेखा सोम ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर डॉक्टर आरती राणा, सचिन कुमार, पुष्पेंद्र कुमार आकांक्षा सक्सेना उषा, ललिता आदि शोधार्थी विद्यार्थी शामिल रहे।

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