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Tuesday, February 11, 2025

क्षेत्रों को जानना है तो ज्ञान प्राप्त करना होगा और ज्ञान का एकमात्र सशक्त साधन है "भाषा": डॉक्टर वंदना अग्निहोत्री


सपना साहू 
नित्य संदेश, इंदौर। भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ, शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई स्नाकोत्तर कन्या महाविद्यालय में "अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस" कार्यक्रम की श्रृंखला में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ संस्था प्रमुख डॉ. चंद्रा तालेरा जैन, मुख्य वक्ता डॉ. वंदना अग्निहोत्री, प्रकोष्ठ संयोजिका डॉ. निशा मोदी के द्वारा किया गया।

उच्च शिक्षा विभाग भोपाल के त्रैमासिक कैलेंडर के अनुसार फरवरी माह की गतिविधियों के परिपालन में "भारतीय भाषाएं एवं भारतीय ज्ञान परंपरा" पर व्याख्यान देते हुए प्रमुख वक्ता डॉक्टर वंदना अग्निहोत्री ने अपने उद्बोधन में कहा, किसी भी राज्य या राष्ट्र की नींव इतिहास, संस्कृति और परंपराएं होती हैं, यदि हमें इन क्षेत्रों को जानना है तो ज्ञान प्राप्त करना होगा और ज्ञान का एकमात्र सशक्त साधन है "भाषा"। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 8 में 22 प्रमुख भारतीय भाषाएं एवं लगभग 1600 छोटी भाषाएं एवं बोलियां सूचीबद्ध हैं। सभी भाषाएं और बोलियां संचार का सशक्त माध्यम है साथ ही चरित्र निर्माण की प्रमुख कड़ी भी है। वर्तमान वैश्वीकरण के युग में बहु भाषा का ज्ञान आज की आवश्यकता है, इससे उपनिषद का प्रमुख सूत्र "वसुधेव कुटुंबकम" की भावना पूर्ण होती है।

मुख्य वक्ता ने कहा, भारतीय भाषाएं दो परिवारों से संबंधित है वे भाषाएं जो हिंदी से मिलती-जुलती हैं आर्य भाषा परिवार एवं अन्य भाषाएं द्रविड़ भाषा परिवार के अंतर्गत आती हैं। हिंदी की लिपि देवनागरी है। ज्ञान के विस्तार के लिए बहु भाषा का ज्ञान वर्तमान की आवश्यकता है। देश– देशांतर की विभिन्न भाषाओं के मध्य अंतः संवाद और अनुवाद बहुत जरूरी है तभी हम विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते हुए अनेकता में एकता की भावना का विकास कर सकते हैं। मैडम वंदना ने भारतीय ज्ञान परंपरा के साहित्य, वेद ,पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति की व्याख्या भी की है। 

श्रीमद् भागवत गीता के सूत्र "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि" का उल्लेख करते हुए युवा छात्राओं को कहा, आपको ज्ञान हासिल करने के लिए निरंतर कर्म करना है। आपका लक्ष्य होना चाहिए बिना फल की इच्छा के कर्म करना तभी आप भारतीय परंपरा, संस्कृति, ज्ञान का विस्तार, प्रचार –प्रसार विश्व जगत में कर सकेंगे। भगवत गीता में जो है वह संसार में हर जगह है , जो भगवत गीता में नहीं कहा गया है वह संसार में कहीं भी मौजूद नहीं है। भारतीय ज्ञान परंपरा साहित्य से प्राप्त ज्ञान का विभिन्न मातृ भाषाओं में अनुवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करना चाहिए तभी ज्ञान का संरक्षण एवं प्रसार उचित तरीके से फलीभूत होगा और अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी का उद्देश्य को पूर्ण होगा। 

महाविद्यालय प्राचार्य ने अपने आशीर्वाद देते हुए छात्राओं से कहा 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल' यही दोहा मातृभाषा की उन्नति का मूलाधार है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है। आप सभी छात्राएं मातृभाषा में असीमित शिक्षा प्राप्त कर उसका प्रचार– प्रसार करने का संकल्प लीजिए। प्रशासनिक अधिकारी डॉ. विष्णु प्रसाद बैरागी ने अपने वक्तव्य में कहा "मातृभाषा जीवन का आधार है, मातृभाषा ही जीवन का अहम भाग है"।

भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ की संयोजिका डॉ. निशा मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास, उद्देश्य और महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ढाका विश्वविद्यालय के उन छात्रों को समर्पित है जो बांग्ला भाषाओं को सम्मान दिलाने की लड़ाई में मारे गए थे। इसका प्रमुख उद्देश्य विश्व में भाषाओं एवं सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना और सभी देशों की वर्तमान मातृभाषाओं के प्रति उचित सम्मान दिलाना है।

डॉ. आकांक्षा सिंघल ने कार्यक्रम संचालन में कहा "जिसमें हो नई उमंग और हो नई आशा, वही होती है दिल में बसने वाली मातृभाषा"। डॉ शौकी गुप्ता ने कहा कि "मातृभाषा से बढ़कर ना कुछ है, बस यही एक दूसरे का विश्वास है ।"पंक्तियों से आभार व्यक्त किया। 

महाविद्यालय परिवार से डॉ. शीतल ब्रह्माने, प्रो. सादिक खान, डॉ. अंतिम बाला शास्त्री, डॉ.दिशा हरिनखेरे, डॉ. पूजा जायसवाल की उपस्थिति से भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ गौरवान्वित हुआ।

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